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याद भी है

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रुक के भी पीछे देखा होता  नुक्कड़ के  उस मोड़ से  आज भी बिछाएं हैं पलकें  बस तेरा ही इन्तजार है । ओझल नजरों के दामन से  तेरा वो सिसक के जाना  याद भी है तुझको  वो तेरा सिर झुका के जाना बस तेरा ही इंतजार है  आखिरी इस सांस को  रहमत को इबादत करता  भोर से बस सांझ तक

तेरी आहट

एहसास होता है ? उस आहट का कभी जिस आवाज को सुनने की तलब थी तुझे जिस साँस को तू अपनी साँस कहती थी जिस जान को अपनी जान कहती थी कभी याद है ना अपना वादा या फिर भूल गयी मेरा है मेरा ही रहेगा यही तो शब्द थे ना वो तू मेरी सुबह तू ही शाम तू मेरा हर पल यही तो कहा था यही वादा था याद है ना क्या हुआ था ऐंसा ? जो तोड़ दी ये डोर तू ही तो कहती थी कुछ भी हो तू मेरा है कितनी भी मुश्किल घड़ियां हो साथ देना फिर क्या हुआ ? वो शब्द थे जो खो गये ? ASHOK TRIVEDI . 28/08/2019

तेरी कसमें

क्या हुआ उन कसमों वादों का जो तूने मेरे सिराने के पास रखे तूने ही तो किया था वादा याद तो है ना ? कभी न होंगे इक दूजे से दूर चाहे कितने ही आ जाये तूफान तूने ही तो किया था वादा याद तो है ना ? तुझ से मेरी हर शाम -सुबह तू ही मेरा हर सुख -दुख का साथी तूने ही तो किया था वादा याद तो है ना ? ASHOK TRIVEDI  26/08/2019

अरमान था जिस ख्वाब का

मुझे अरमान था जिस ख्वाब का वो हमको मिला ही नही चाहत बेपनाह थी उसको पाने की उम्मीदों से ऊपर भी गया सोच कर उसे पाने को हर पहलु इबादत की उसको पाने की निशा गुजरते भोर तक हर ख्वाब उसका ही था दिन निकले तरस गए उसको पाने को ASHOK TRIVEDI 26/08/2019

उसका दिल

उसका दिल घर था मेरे ख्वाबों का दिया जला था प्यार का कोने में मेरी चाहत को यकीन था उस पर वो मेरा ही है पराया घर का होकर उस दिल में क्या राज थे क्या जानें वो क्या बोलते थे क्या उनके दिल में था बरसों की कहानी थी या तनहाई या समय था उनको बिताना तनहाई का आज बरसों बाद अपना समझा हो उसने लगता तो था वो आज भी मेरे ही हैं अरे कोंन था मेरा ? न आज न कल आज आ ही गया फिर जुदाई का पल अशोक त्रिवेदी  23/08/2019

सच्चा प्रेम

पेड़ था मैं, खुश था ; अपने प्राकृतिक जीवन में क्या हरा भरा था ,मस्त जी रहा था ; जीवन में कोमल थी हर टहनी मेरी ,कोमल वो हर पत्ती थी मस्त खिलता था  मेरा रोम-रोम हर उस किरण से समानताएं बहुत थी उन सभी पेड़ों से जो फलदार थे में फल फूल और खुशबू न दे सका हवा तो शुद्ध देता था एक दिन वो मासूम खूबसूरत सी आरी चली मेरे तन पे बस क्या था अब मैं बेबस था उस आरी के प्रेम तले वो मुझे काटती रही और में निःशब्द था प्रेम में उसके अब मेरा वो वक्त आया जब कुछ कम रहा उसका असर पर वो कभी बेवफा नही रही ,में भी उसको समर्पित था आज वो भी जंग खा गयी और में राख में अमर हो गया                          अशोक त्रिवेदी 20/08/2019

मेरा प्रण

सुरुआत तूने की , अंत में करूँगा बात को आग दी, हवा को दिशा दी बात का बतंगड़ किया सरेआम आग उगली जो भी बोला , भला बोला निस्वार्थ है ! तेरा प्रेम उन यमदूतों के खून से उनके पसीने में तुझे डर नजर आया, मेरे खून के कतरे में तुझे फिर शक नजर आया देश तेरा भी है मेरा भी ,में प्यार का पैगाम लाया तूने जहर से फिर अमल लाया रुक के भी न रुकी,नब्ज़ मेरी काफिरों के हौसले फिर आज तू बुलंद कर  गयी । अशोक त्रिवेदी 18/08/2019

विष्णु शहत्रनाम

ॐ विश्वं विष्णु: वषट्कारो भूत-भव्य-भवत-प्रभुः । भूत-कृत भूत-भृत भावो भूतात्मा भूतभावनः ।। 1 ।। पूतात्मा परमात्मा च मुक्तानां परमं गतिः। अव्ययः पुरुष साक्षी क्षेत्रज्ञो अक्षर एव च ।। 2 ।। योगो योग-विदां नेता प्रधान-पुरुषेश्वरः । नारसिंह-वपुः श्रीमान केशवः पुरुषोत्तमः ।। 3 ।। सर्वः शर्वः शिवः स्थाणु: भूतादि: निधि: अव्ययः । संभवो भावनो भर्ता प्रभवः प्रभु: ईश्वरः ।। 4 ।। स्वयंभूः शम्भु: आदित्यः पुष्कराक्षो महास्वनः । अनादि-निधनो धाता विधाता धातुरुत्तमः ।। 5 ।। अप्रमेयो हृषीकेशः पद्मनाभो-अमरप्रभुः । विश्वकर्मा मनुस्त्वष्टा स्थविष्ठः स्थविरो ध्रुवः ।। 6 ।। अग्राह्यः शाश्वतः कृष्णो लोहिताक्षः प्रतर्दनः । प्रभूतः त्रिककुब-धाम पवित्रं मंगलं परं ।। 7।। ईशानः प्राणदः प्राणो ज्येष्ठः श्रेष्ठः प्रजापतिः । हिरण्य-गर्भो भू-गर्भो माधवो मधुसूदनः ।। 8 ।। ईश्वरो विक्रमी धन्वी मेधावी विक्रमः क्रमः । अनुत्तमो दुराधर्षः कृतज्ञः कृति: आत्मवान ।। 9 ।। सुरेशः शरणं शर्म विश्व-रेताः प्रजा-भवः । अहः संवत्सरो व्यालः प्रत्ययः सर्वदर्शनः ।। 10 ।। अजः सर्वेश्वरः सिद्धः सिद्धिः सर्वादि: अच्युतः । ...

सुकर्म sukarm kahani ek bujurug dampati ki

सुकर्म कहानी एक बुजुर्ग दम्पति की कहानी आज कल की पारिवारिक जीवन शैली पर आधारित है, इस कहानी का किसी व्यक्ति विशेष से किसी भी प्रकार से कोई सम्बन्ध नहीं है l  कुछ समय पहले की बात है शक्ति अपने गाँव से नौकरी करने शहर चला गया जहां जाकर वो किसी कंपनी मैं नौकरी करने लगा सैलरी भी उसकी शैक्षणिक योग्यतानुसार थी l उसने अपनी पहली सैलरी से घर मैं अपने माता-पिता के लिए मोबाइल फ़ोन खरीदा तथा दो दिन की छुट्टी लेकर गाँव आ गया शक्ति अपने माता-पिता को बहुत चाहता था गाँव मैं भी सभी शक्ति को चाहते थे दो दिन की छुट्टी पूरी होने के बाद शक्ति वापस शहर चला गया काफी समय हो गया शक्ति गाँव नहीं गया किन्तु फ़ोन से अपने माता-पिता से संपर्क मैं था l          गाँव मैं भी शक्ति की काफी चर्चा थी की अच्छी नौकरी मैं लग गया है अपने माँ-बाप का भी अच्छा ध्यान रखता है समय-समय पर उनको बैंक से पैंसे भेजते रहता है ; एक बूढ़े माँ-बाप को और क्या चाहिए था, वे काफी खुश थे l ऐंसे होते-होते तीन साल बीत गये लेकिन अब लड़के के तेवर कुछ बदले-बदले लगने लगे वो पहले से भी कम पैंसे घर...

प्यार कितना है

प्यार कितना है  कभी तू भी तो समझ के देख ,प्यार कितना है, गहराई है, पर अनंत है ,कभी भाँप के  तो देख  समंदर हूँ फिर भी प्यासा हूँ  पसरी सूखी रेत किनारे पर है  अश्कों की अठखेलियाँ रोज मैं देखता कभी तू भी तो घटा बन के छाजा तू भी तो समझ के देख ,प्यार कितना है, गहराई है, पर अनंत है ,कभी नाप के तो देख  ASHOK TRIVEDI