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तरुणा -हिंदी कहानी

तरुणा मेरी एक और कहानी है, जिसका लेखन कार्य  कुछ ही दिनों मैं संपन हो जायेगा ! धन्यवाद आपका प्यार और सहयोग मुझ पर बना रहे ....अशोक त्रिवेदी 

दया धर्म

सुदूर पहाड़ की ढलान पर कुछ सीढ़ी नुमा खेतो की आकृति मानो ऐंसी प्रतीत हो रही है जैंसे हज़ारों इंसान पंक्तिबद्द् बैठें हो ।   ये कोई परिकल्पना मात्र नहीं ये सच्चाई है मेरे पहाड़ की सुंदरता की, जंहा जल,जंगल,पशु-पक्षी  इसकी खूबसूरती मैं चार चाँद लगा देते हैं  । जंहा बेलों की जोड़ी (हीरा-मोती) के गले मैं बधीं घंटियों की टन-टन की मधुर ध्वनि अतिकर्णप्रिय लगती है ।   हम सभी का अपनी इस मिट्टी से माँ और बेटे का रिश्ता है । क्या आप अब भी नींद से नही जागे, उठो जागो नींद से अब समय आ गया है ।   समय कोन सा समय ? क्या ज्ञात है आप लोगों को कोन सा समय आ गया है ; कुछ मुर्ख और कुछ विद्धवान ये सवाल अवश्य ही करेंगे ,की मैं किस अमूल्य समय की बात कर रहा हूँ । जी हाँ कुछ महाशय ये जानते हैं ; मैं पहाड़ बचाओ अभियान की बात कर रहा हूँ ;जीहां सही पढ़ा आप लोगों ने  | अगर आज पहाड़ो को ना बचाया गया तो आने वाली पीढ़ी तरस जायेगी एक घूँट पानी को, तड़प जायेगी ऑक्सीजन की एक सांस को;  तब निर्वस्त्र पहाड़ लाचार और बेवस होंगे | ना तो हवा होगी सांस लेने को ; न पीने को पानी।      जब हमारे सारे गिलेशियर (हिमशैल) पिघल जायें

मेरे पहाड़ी और पहाड़

भारतवर्ष मैं उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है । जो हिमालय की गौद मैं बसा है । यंहा के लोग बड़े ही भोले-भाले स्वभाव के होते हैं ।      यंहा की अपणी एक लोक सभ्यता है । हम पहाड़ी लोग साधारण तरीके से अपना जीवन यापन करते हैं ।   उत्तराखंड की स्थापना 9 नवम्बर 2000 को हुई ,पहले हम उत्तरप्रदेश मैं आते थे । जो काफी संघर्ष करने बाद एक पृथक राज्य बना । जिसके लिए कई लोग शहीद हो गए (माताओ ने अपने बेटे खोये,बहनों ने भाई, कई माताये भी शहीद हुई ! शासन ने उस समय इतनी निरंकुशता की आह ! ऐसी बर्बरता को कौन भुला सकता है । दिल काँप उठता है उस बात को याद करके ,मैं बहुत छोटा बच्चा था तब लेकिन अखबारों की वो लाइन आज तक मेरे जेहन मैं हैं )                           यंहा कुमाऊं और गढ़वाल को मिला कर 13 जिले है । है यंहा की पहाड़ी भाषाएँ गढ़वाली,कुमाउनी,जौनसारी मुख्य रूप से बोली जाने वाली भाषाये हैं ।    आप लोगों ने यदि यंहा के लोक गीतों को सुना होगा तो आप यंहा की सुंदरता,विपदा,आपदा, आदि बातों से भी वाकिफ होंगे । आप लोग पहाड़ का जीवन जितना सरल समझते हो उतना है नही ,यंहा का रहन सहन भी अब किसी शहरी क्षेत्र से कम नह