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प्यार कितना है

प्यार कितना है  कभी तू भी तो समझ के देख ,प्यार कितना है, गहराई है, पर अनंत है ,कभी भाँप के  तो देख  समंदर हूँ फिर भी प्यासा हूँ  पसरी सूखी रेत किनारे पर है  अश्कों की अठखेलियाँ रोज मैं देखता कभी तू भी तो घटा बन के छाजा तू भी तो समझ के देख ,प्यार कितना है, गहराई है, पर अनंत है ,कभी नाप के तो देख  ASHOK TRIVEDI

वो सपना

वो सपना   काश वो सपना ऐंसा होता , उसे भी पता होता  कौन  जागा रातों में, कौन जागा सपनों में इनायत ये बरसी होती , काश वो साथ होती न पर्दा इश्क़ का करती , न जाया ये वक़्त होता कितनी है जिन्दगी ? पल बीते जाये  वक़्त न जाने कल सोच के भी रोये  अनजान कल भी था ,अनजान आज भी हूँ  जिन्दगी यूँ ही सिमटती रेत सी ,फिसलती  सपना देखा उनको अपना मानकर लेकिन भूल थी ,मेरी उसे अपना जानकर काश वो सपना ऐंसा होता , उसे भी पता होता  कौन  जागा रातों में, कौन जागा सपनों में इनायत ये बरसी होती , काश वो साथ होती न पर्दा इश्क़ का करती , न जाया ये वक़्त होता अशोक त्रिवेदी  १२/१६/२०१७                                                      www.kundaliya.blogspot.in the new morning

TRUE STORY {इमानदारी का परिचय}

इमानदारी का परिचय  रविबार का दिन था । शाम को बीबी-बच्चे को अपनी नई नवेली हौंडा स्कूटी से बाजार घुमाने के लिए गया था । बाजार मैं छोटा-मोटा काम निपटा कर स्कूटी से हम फल-सब्जी बाजार की ओर  निकले ही थे मैंने अपनी स्कूटी को रोककर बीबी से फल लेने की बात ही की थी की, इतने मैं फल वाले की आवाज कानों तक आयी एक किलो साठ का, किलो साठ का ! मैंने फल वाले के सामने जाकर अपनी गाड़ी रोकी ,और भाई सो का दो किलो कर दो यार, उसने भी झट से हाँ कर दी  । मैं भी फल को एक-एक करके देखकर तराजू मैं रख रहा था  । फल वाले ने मुझे फल थमा दिए मैंने भी फल अपनी बीबी को थमा दिए , मैंने फल वाले को पैंसे देने के लिए जेंसे ही जेब मैं हाथ डाला, मेरे होश उड़ गये, जेब मैं तो पर्स था ही नहीं , मैं बीबी की ओर देखने लगा मेंने सोचा क्या पता मेरा पर्स उनके पास हो  । लेकिन नही मैं गलत था । मेरा पर्स तो कंही गिर गया था, लेकिन मुझे तो विश्वास ही नही हो रहा था मुझे तो कुछ सूझ ही नही रहा था, दिमाग अस्थिर हो गया था अभी तो मैंने जैकेट ली और पैंसे देने के बाद पर्स अपनी जेब मैं रखा था  । मेरा पर्स आज तक कभी भी गुम् नही हुआ था,

तिमिर

तिमिर है तिलमिलाया ,मेरे प्रियतम के आने से  रोशनी है खिलखिलाई ,तारों को साथ लेके  चाँद भी चमकीला हैं , धरा ये दूध से नहाई है  सरसराती पवन ये , मंद सुगंध को साथ लिए  बरसों बाद आया आज ,तीज ये त्यौहार है  मिलन की इस घडी मैं ,देखो क्या बहार है  कल तक दुनिया सूनी थी ,आज सजी है  सोयी किस्मत थी कल तक, आज जगी है  तिमिर है तिलमिलाया ,मेरे प्रियतम के आने से  रोशनी है खिलखिलाई ,तारों को साथ लेके  चाँद भी चमकीला हैं , धरा ये दूध से नहाई है  सरसराती पवन ये , मंद सुगंध को साथ लिए लिख दूँ तुझे चंद पन्नों की लाइनों मैं  सँवार लूँ जी भर के आज,निहार लूँ  घड़ी ये मिलन की, शायद कल न हो दुनिया रहम हीन है ,छीन लेगी मुझसे तिमिर है तिलमिलाया ,मेरे प्रियतम के आने से  रोशनी है खिलखिलाई ,तारों को साथ लेके  चाँद भी चमकीला हैं , धरा ये दूध से नहाई है सरसराती पवन ये , मंद सुगंध को साथ लिए    अशोक त्रिवेदी  १७.११.२०१७  https://kundaliya.blogspot.in than kyou मुझे उम्मीद थी ☺ thankyou google adsence

तेरा वो इनकार करना

तेरा वो इकरार करना  तेरा वो इनकार करना पल-पल बदले बादल सा में नभ हूँ जानता हूँ सब रिम-झिम बरसती  कड़कती कभी बिजली सी लिपटती बल्लरी सी खेलती अठखेलियां तेरा वो इकरार करना  तेरा वो इनकार करना पल-पल बदले बादल सा में नभ हूँ जानता हूँ सब ASHOK TRIVEDI 15.11.2017 www.kundaliya.blogspot.in

तू पहचानती है

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तू पहचानती है तू सब जानती भी है फिर भी अजनबी बनती है तेरी नफरत ये बयां करती है                          करके मोह तुझसे प्रियतमा                          कैंसी उलझन ये हुई                            नैन रोये बिन अश्कों के                        निशाँ बाकी दर्द के                            अशोक त्रिवेदी 13.11.2017  www.kundaliya.blogspot.in

NARSINGH CHALISA [ अथ श्री नरसिंह चालीसा ]

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[ अथ श्री नरसिंह चालीसा ] मास वैशाख कृतिका युत हरण मही को भार । शुक्ल चतुर्दशी सोम दिन लियो नरसिंह अवतार ।। धन्य तुम्हारो सिंह तनु, धन्य तुम्हारो नाम । तुमरे सुमरन से प्रभु , पूरन हो सब काम ।। नरसिंह देव में सुमरों तोहि ,   धन बल विद्या दान दे मोहि ।।1।। जय जय नरसिंह कृपाला करो सदा भक्तन प्रतिपाला ।।२ ।। विष्णु के अवतार दयाला  महाकाल कालन को काला ।।३ ।। नाम अनेक तुम्हारो बखानो अल्प बुद्धि में ना कछु  जानों ।।४।। हिरणाकुश नृप अति अभिमानी तेहि के भार मही अकुलानी ।।५।। हिरणाकुश कयाधू के जाये नाम भक्त प्रहलाद कहाये ।।६।। भक्त बना बिष्णु को दासा  पिता कियो मारन परसाया ।।७।। अस्त्र-शस्त्र मारे भुज दण्डा       अग्निदाह कियो प्रचंडा  ।।८।। भक्त हेतु तुम लियो अवतारा  दुष्ट-दलन हरण महिभारा ।।९।। तुम भक्तन के भक्त तुम्हारे प्रह्लाद के प्राण पियारे ।।१०।। प्रगट भये फाड़कर तुम खम्भा देख दुष्ट-दल भये अचंभा  ।।११।। खड्ग जिह्व तनु सुंदर साजा ऊर्ध्व केश महादष्ट्र विर

HANUMAAN CHALISHA [ हनुमान चालीसा ]

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हनुमान चालीसा  ॥दोहा॥ श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि । बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥ बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार । बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥ ॥चौपाई॥ जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥ राम दूत अतुलित बल धामा । अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥ महाबीर बिक्रम बजरङ्गी । कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥ कञ्चन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥ हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥ सङ्कर सुवन केसरीनन्दन । तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥ बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥७॥ प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥ सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥ भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥ लाय सञ्जीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥ रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई । तुम

नियति

नियति  मैं तन हूँ मुझे मिलना माटी है अहम् अहंकार राग द्वेष खाली है व्यर्थ है कल की चिंता उम्र तो नाटी है                               मैं तो तन हूँ मुझे मिलना माटी है                               मैं तो पंचतत्व का मैल हूँ                               मेरी गिनती इंसानों मैं                               बस कुछ बरसों की मैं तो तन हूँ मुझे मिलना माटी है सरल मेरी नही रचना परमात्मा से मेरी मित्रता बस कुछ बरसों की मैं तो तन हूँ मुझे मिलना माटी है प्राण विहीन है धरा पर पड़ा पास रोती एक नार बस इतना ही है मेरा संसार   ASHOK TRIVEDI 15.10.2017

Image collection BY-A,P

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kedarnath temple uttrakhand  india left hand mehandi indian style 18+ Marigold Flower   Mandakini River (kedarnath) Red flower full moon evening-A.P Purple Flower phto by-A.P Mustard (Sarson) flower  (Brassica- Scientific name ) Photo By-A.P water dropping-A.P

गढ़वाली साहित्य

गढ़वाली साहित्य की रोचक जानकारी  गढ़वाली साहित्य- गढ़वाली साहित्य में प्रायः दो ही लिंग होते है ------ पुल्लिंग ऊकारांत होते हैं जैसे -पुरणु ,उन्दू,ढिमकू,चोंसु, चोमासु आदि स्त्रीलिंग प्रायः  ईकारांत , अकारान्त और ऊकारांत होते हैं जैंसे - काखड़ी ,मुंगरी आदि साहित्य प्रेमी अशोक त्रिवेदी   मैं हर बार-त्यौहार मैं स्वाला-पक्वाड़ा बनाना संस्कृति का एक हिस्सा है , और जिन लोगों के यंहा नही पाता (जिनका सूतक के चलते ) उनको भी बनाकर दिया जाता है I प्रसाद की बात करें तो ज्यादातर रोट, हलवा,गुल्थ्या ,गुलगुला ,चूरण प्रसाद (आटे को भूनकर उसमें चीनी मिककर  बनाया जाने वाला चूरन ) रिवाज़ मेरे गढ़वाल दिवाली मैं --तिल के तिल-छटो की रात्रि के समय घर के पास सभी लोग मिलकर पहले पूजा करते हैं ,तत्पश्चात उनकी मशाल(भेलों)  को सिर के उपर घड़ी की दिशा मैं घुमातें हैं I महिला मंगलदल / पंचायत  जिस तरह आज देश की संसद मैं हो हंगामा होता है वो कंही और से नहीं बल्कि हमारे गांवों की पंचायत की देंन  है , क्योंकि मैंने गाँव की पंचायत देखि हैं ,पूरी पंचायत हो हल्ले की भेंट चढ़ जाती है