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Showing posts from October, 2017

NARSINGH CHALISA [ अथ श्री नरसिंह चालीसा ]

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[ अथ श्री नरसिंह चालीसा ] मास वैशाख कृतिका युत हरण मही को भार । शुक्ल चतुर्दशी सोम दिन लियो नरसिंह अवतार ।। धन्य तुम्हारो सिंह तनु, धन्य तुम्हारो नाम । तुमरे सुमरन से प्रभु , पूरन हो सब काम ।। नरसिंह देव में सुमरों तोहि ,   धन बल विद्या दान दे मोहि ।।1।। जय जय नरसिंह कृपाला करो सदा भक्तन प्रतिपाला ।।२ ।। विष्णु के अवतार दयाला  महाकाल कालन को काला ।।३ ।। नाम अनेक तुम्हारो बखानो अल्प बुद्धि में ना कछु  जानों ।।४।। हिरणाकुश नृप अति अभिमानी तेहि के भार मही अकुलानी ।।५।। हिरणाकुश कयाधू के जाये नाम भक्त प्रहलाद कहाये ।।६।। भक्त बना बिष्णु को दासा  पिता कियो मारन परसाया ।।७।। अस्त्र-शस्त्र मारे भुज दण्डा       अग्निदाह कियो प्रचंडा  ।।८।। भक्त हेतु तुम लियो अवतारा  दुष्ट-दलन हरण महिभारा ।।९।। तुम भक्तन के भक्त तुम्हारे प्रह्लाद के प्राण पियारे ।।१०।। प्रगट भये फाड़कर तुम खम्भा देख दुष्ट-दल भये अचंभा  ।।११।। खड्ग जिह्व तनु सुंदर साजा ऊर्ध्व केश महादष्ट्र विर

HANUMAAN CHALISHA [ हनुमान चालीसा ]

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हनुमान चालीसा  ॥दोहा॥ श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि । बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥ बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार । बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥ ॥चौपाई॥ जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥ राम दूत अतुलित बल धामा । अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥ महाबीर बिक्रम बजरङ्गी । कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥ कञ्चन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥ हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥ सङ्कर सुवन केसरीनन्दन । तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥ बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥७॥ प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥ सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥ भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥ लाय सञ्जीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥ रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई । तुम

नियति

नियति  मैं तन हूँ मुझे मिलना माटी है अहम् अहंकार राग द्वेष खाली है व्यर्थ है कल की चिंता उम्र तो नाटी है                               मैं तो तन हूँ मुझे मिलना माटी है                               मैं तो पंचतत्व का मैल हूँ                               मेरी गिनती इंसानों मैं                               बस कुछ बरसों की मैं तो तन हूँ मुझे मिलना माटी है सरल मेरी नही रचना परमात्मा से मेरी मित्रता बस कुछ बरसों की मैं तो तन हूँ मुझे मिलना माटी है प्राण विहीन है धरा पर पड़ा पास रोती एक नार बस इतना ही है मेरा संसार   ASHOK TRIVEDI 15.10.2017