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Showing posts from November, 2017

TRUE STORY {इमानदारी का परिचय}

इमानदारी का परिचय  रविबार का दिन था । शाम को बीबी-बच्चे को अपनी नई नवेली हौंडा स्कूटी से बाजार घुमाने के लिए गया था । बाजार मैं छोटा-मोटा काम निपटा कर स्कूटी से हम फल-सब्जी बाजार की ओर  निकले ही थे मैंने अपनी स्कूटी को रोककर बीबी से फल लेने की बात ही की थी की, इतने मैं फल वाले की आवाज कानों तक आयी एक किलो साठ का, किलो साठ का ! मैंने फल वाले के सामने जाकर अपनी गाड़ी रोकी ,और भाई सो का दो किलो कर दो यार, उसने भी झट से हाँ कर दी  । मैं भी फल को एक-एक करके देखकर तराजू मैं रख रहा था  । फल वाले ने मुझे फल थमा दिए मैंने भी फल अपनी बीबी को थमा दिए , मैंने फल वाले को पैंसे देने के लिए जेंसे ही जेब मैं हाथ डाला, मेरे होश उड़ गये, जेब मैं तो पर्स था ही नहीं , मैं बीबी की ओर देखने लगा मेंने सोचा क्या पता मेरा पर्स उनके पास हो  । लेकिन नही मैं गलत था । मेरा पर्स तो कंही गिर गया था, लेकिन मुझे तो विश्वास ही नही हो रहा था मुझे तो कुछ सूझ ही नही रहा था, दिमाग अस्थिर हो गया था अभी तो मैंने जैकेट ली और पैंसे देने के बाद पर्स अपनी जेब मैं रखा था  । मेरा पर्स आज तक कभी भी गुम् नही हुआ था,

तिमिर

तिमिर है तिलमिलाया ,मेरे प्रियतम के आने से  रोशनी है खिलखिलाई ,तारों को साथ लेके  चाँद भी चमकीला हैं , धरा ये दूध से नहाई है  सरसराती पवन ये , मंद सुगंध को साथ लिए  बरसों बाद आया आज ,तीज ये त्यौहार है  मिलन की इस घडी मैं ,देखो क्या बहार है  कल तक दुनिया सूनी थी ,आज सजी है  सोयी किस्मत थी कल तक, आज जगी है  तिमिर है तिलमिलाया ,मेरे प्रियतम के आने से  रोशनी है खिलखिलाई ,तारों को साथ लेके  चाँद भी चमकीला हैं , धरा ये दूध से नहाई है  सरसराती पवन ये , मंद सुगंध को साथ लिए लिख दूँ तुझे चंद पन्नों की लाइनों मैं  सँवार लूँ जी भर के आज,निहार लूँ  घड़ी ये मिलन की, शायद कल न हो दुनिया रहम हीन है ,छीन लेगी मुझसे तिमिर है तिलमिलाया ,मेरे प्रियतम के आने से  रोशनी है खिलखिलाई ,तारों को साथ लेके  चाँद भी चमकीला हैं , धरा ये दूध से नहाई है सरसराती पवन ये , मंद सुगंध को साथ लिए    अशोक त्रिवेदी  १७.११.२०१७  https://kundaliya.blogspot.in than kyou मुझे उम्मीद थी ☺ thankyou google adsence

तेरा वो इनकार करना

तेरा वो इकरार करना  तेरा वो इनकार करना पल-पल बदले बादल सा में नभ हूँ जानता हूँ सब रिम-झिम बरसती  कड़कती कभी बिजली सी लिपटती बल्लरी सी खेलती अठखेलियां तेरा वो इकरार करना  तेरा वो इनकार करना पल-पल बदले बादल सा में नभ हूँ जानता हूँ सब ASHOK TRIVEDI 15.11.2017 www.kundaliya.blogspot.in

तू पहचानती है

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तू पहचानती है तू सब जानती भी है फिर भी अजनबी बनती है तेरी नफरत ये बयां करती है                          करके मोह तुझसे प्रियतमा                          कैंसी उलझन ये हुई                            नैन रोये बिन अश्कों के                        निशाँ बाकी दर्द के                            अशोक त्रिवेदी 13.11.2017  www.kundaliya.blogspot.in