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Showing posts from August, 2019

पुराणी याद

पुराणी याद क्या फैदा क्या फैदा ,  तों पुराणी बातु को पुराणी-धुराणी , छे वा सब्येई बात होणी- खाणी की छेये नि , सी क्वेइ बात अद बीच मा ग्याई , तू छोड़ि की साथ ©@shokanu 31/08/2019

तेरी आहट

एहसास होता है ? उस आहट का कभी जिस आवाज को सुनने की तलब थी तुझे जिस साँस को तू अपनी साँस कहती थी जिस जान को अपनी जान कहती थी कभी याद है ना अपना वादा या फिर भूल गयी मेरा है मेरा ही रहेगा यही तो शब्द थे ना वो तू मेरी सुबह तू ही शाम तू मेरा हर पल यही तो कहा था यही वादा था याद है ना क्या हुआ था ऐंसा ? जो तोड़ दी ये डोर तू ही तो कहती थी कुछ भी हो तू मेरा है कितनी भी मुश्किल घड़ियां हो साथ देना फिर क्या हुआ ? वो शब्द थे जो खो गये ? ASHOK TRIVEDI {GYANESH} WED. 28/08/2019

तेरी कसमें

क्या हुआ उन कसमों वादों का जो तूने मेरे सिराने के पास रखे तूने ही तो किया था वादा याद तो है ना ? कभी न होंगे इक दूजे से दूर चाहे कितने ही आ जाये तूफान तूने ही तो किया था वादा याद तो है ना ? तुझ से मेरी हर शाम -सुबह तू ही मेरा हर सुख -दुख का साथी तूने ही तो किया था वादा याद तो है ना ? ASHOK TRIVEDI {GYANESH} 26/08/2019

अरमान था जिस ख्वाब का

मुझे अरमान था जिस ख्वाब का वो हमको मिला ही नही चाहत बेपनाह थी उसको पाने की उम्मीदों से ऊपर भी गया सोच कर उसे पाने को हर पहलु इबादत की उसको पाने की निशा गुजरते भोर तक हर ख्वाब उसका ही था दिन निकले तरस गए उसको पाने को ASHOK TRIVEDI {GYANESH} 26/08/2019

उसका दिल

उसका दिल घर था मेरे ख्वाबों का दिया जला था प्यार का कोने में मेरी चाहत को यकीन था उस पर वो मेरा ही है पराया घर का होकर उस दिल में क्या राज थे क्या जानें वो क्या बोलते थे क्या उनके दिल में था बरसों की कहानी थी या तनहाई या समय था उनको बिताना तनहाई का आज बरसों बाद अपना समझा हो उसने लगता तो था वो आज भी मेरे ही हैं अरे कोंन था मेरा ? न आज न कल आज आ ही गया फिर जुदाई का पल अशोक त्रिवेदी ( ज्ञानेश) 23/08/2019

सच्चा प्रेम

पेड़ था मैं, खुश था ; अपने प्राकृतिक जीवन में क्या हरा भरा था ,मस्त जी रहा था ; जीवन में कोमल थी हर टहनी मेरी ,कोमल वो हर पत्ती थी मस्त खिलता था  मेरा रोम-रोम हर उस किरण से समानताएं बहुत थी उन सभी पेड़ों से जो फलदार थे में फल फूल और खुशबू न दे सका हवा तो शुद्ध देता था एक दिन वो मासूम खूबसूरत सी आरी चली मेरे तन पे बस क्या था अब मैं बेबस था उस आरी के प्रेम तले वो मुझे काटती रही और में निःशब्द था प्रेम में उसके अब मेरा वो वक्त आया जब कुछ कम रहा उसका असर पर वो कभी बेवफा नही रही ,में भी उसको समर्पित था आज वो भी जंग खा गयी और में राख में अमर हो गया                          अशोक त्रिवेदी 20/08/2019

मेरा प्रण

सुरुआत तूने की , अंत में करूँगा बात को आग दी, हवा को दिशा दी बात का बतंगड़ किया सरेआम आग उगली जो भी बोला , भला बोला निस्वार्थ है ! तेरा प्रेम उन यमदूतों के खून से उनके पसीने में तुझे डर नजर आया, मेरे खून के कतरे में तुझे फिर शक नजर आया देश तेरा भी है मेरा भी ,में प्यार का पैगाम लाया तूने जहर से फिर अमल लाया रुक के भी न रुकी,नब्ज़ मेरी काफिरों के हौसले फिर आज तू बुलंद कर  गयी । अशोक त्रिवेदी 18/08/2019