सुकर्म sukarm kahani ek bujurug dampati ki
सुकर्म
कहानी एक बुजुर्ग दम्पति की
कहानी आज कल की पारिवारिक
जीवन शैली पर आधारित है, इस
कहानी का किसी व्यक्ति विशेष से किसी भी प्रकार से कोई सम्बन्ध नहीं है l
कुछ समय पहले की बात है शक्ति अपने गाँव से
नौकरी करने शहर चला गया जहां जाकर वो किसी कंपनी मैं नौकरी करने लगा सैलरी भी उसकी
शैक्षणिक योग्यतानुसार थी l उसने अपनी पहली सैलरी से घर मैं अपने माता-पिता के लिए
मोबाइल फ़ोन खरीदा तथा दो दिन की छुट्टी लेकर गाँव आ गया शक्ति अपने माता-पिता को
बहुत चाहता था गाँव मैं भी सभी शक्ति को चाहते थे दो दिन की छुट्टी पूरी होने के
बाद शक्ति वापस शहर चला गया काफी समय हो गया शक्ति गाँव नहीं गया किन्तु फ़ोन से
अपने माता-पिता से संपर्क मैं था l
गाँव मैं भी शक्ति की काफी चर्चा थी की
अच्छी नौकरी मैं लग गया है अपने माँ-बाप का भी अच्छा ध्यान रखता है समय-समय पर
उनको बैंक से पैंसे भेजते रहता है ; एक बूढ़े माँ-बाप को और क्या चाहिए था, वे काफी
खुश थे l ऐंसे होते-होते तीन साल बीत गये लेकिन अब लड़के के तेवर कुछ बदले-बदले
लगने लगे वो पहले से भी कम पैंसे घर पर देने लगा लेकिन इस बात से उनको ज्यादा फर्क
तो नहीं पड़ा क्योंकि वे दोनों थोड़ी खेती करते थे इसलिए उनका गुज़ारा चल जाता था l
एक दिन रात को उनको किसी अनजान आदमी का
फ़ोन आया की लड़के की सलामती चाहते हो तो उसको घर बुला लो मैं आपका हितेषी ही बोल
रहा हूँ l रात भर शक्ति के माता-पिता चिंता के कारण सोये ही नहीं उनके मन मैं
अनेकों बाते चल रही थी क्या बात हुई होगी जो वो अजनबी ये बोल गया दो दिन और बीत गए
शक्ति का कोई पता नहीं था उसका फ़ोन भी नहीं लग रहा था , वो किस से बात करें उनकी
कुछ समझ मैं नहीं आ रहा था , शक्ति की माँ का रो –रोकर बुरा हाल था l
रात के 10 बजे थे अचानक मोबाइल फोन बजने
लगा फोन शक्ति के पिताजी ने ही अटेंड किया दूसरी और से शक्ति ही था किन्तु शक्ति
की आवज़ कुछ अलग लग रही थी पिताजी बस फोन पर इतना ही बोले बेटा अपना ख्याल रखना
लेकिन शक्ति के सिर तो कीड़े घुस चुके थे वो अपने पिताजी कहने लगा
मुझे कल सुबह तक
दस हज़ार भेज देना अगर मेरी सलामती चाहते हो तो शक्ति ने फ़ोन बंद कर दिया , सुबह
होते ही पिताजी गाँव के प्रधान जी के पास गये और उनसे पैंसे उधार लाकर बेटे को भेज
दिए लेकिन शक्ति के पिताजी ने इसकी खबर किसी को भी नहीं होने दी कुछ और दिन बीते
ही थे फिर एक रात फ़ोन आया की मुझे दस हजार भेज दो बुजुर्ग बाप फिर सुबह उठकर पास
के दुकानदार से बड़ी मुश्किल से पांच हजार का ही इंतजाम हो पाया और बैंक जाकर अपने
लड़के के खाते मैं जमा कर दिए आज बाप मन ही मन सोचने लगा की ऐंसी संतान से तो मैं
निसंतान ही रहता, ठीक ही होता, ये दिन तो नहीं देखना पड़ता l
शक्ति के पिता के मन मैं अब शक्ति के प्रति
अलगाव की भावना जन्म ले चुकी थी, वो अब बस भगवान से प्रार्थना करते की मुझे और
शक्ति की माँ को इस दुनिया से मुक्ति मिल जाय तो अच्छा ही होगा l वो तो अपनी दुखी
पत्नी की सेवा जी जान से करते रहते, उनके
उपर अब मुसीबतों का पहाड़ था, लेकिन बुजुर्ग ,सबको
बोझ और दुखदायी ही लगते हैं l अब तो यह बात पूरे गाँव भर मैं फैल चुकी थी
की शक्ति आवारा और गलत संगती मैं फंस गया है , मुश्किल है इस दलदल से निकलना भाई,
बहुत मुश्किल l
कल तक जिस शक्ति की गाँव भर मैं लोग मिशाल
देते थे आज उसी शक्ति को लोग भला-बुरा कह रहे हैं, लेकिन क्या इन तमाम लोगों की
भीड़ शक्ति के माँ-बाप को सहारा दे सकती है, क्या उनके बुढ़ापे को सरल बना सकती है ?
नहीं ! कोई भी नहीं, लोग आज के युग मैं अपने माँ-बाप को नहीं पूछ रहे, वो तो शक्ति
के माँ-बाप हैं l शक्ति के माँ-बाप अक्सर अब बीमार रहते खाने पीने के लिए जो भी
कंही से रूखा-सूखा मिलता खा लेते, किन्तु कब तक ? अब तो लोग भी उनके पास नहीं आते
जिन्होंने उधार दिया था उन्होंने भी मकान और जमीन पर अपना कब्जा जमा दिया था l
``डूबते को तिनके का सहारा`` इलेक्शन का
टाइम आने वाला था, कोई बीजेपी का कार्यकर्त्ता उनके गाँव से गुजर रहा था तो उसे
पानी की काफी प्यास लगी थी, गाँव मैं ज्यादा तर घर बंद ही थे क्योंकि आज पहाड़
मूलभूत आवस्य्क्ताओ से बंचित हैं इसलिए पलायन हो गये हैं l पलायन होना सरकार की
कमजोरी साफ़ दिखाती है, नहीं तो कोई पहाड़ को क्यों छोड़ना पसंद करेंगे अगर
आव्स्यक्ताओ की पूर्ती हो जाती तो मैं पागल नहीं था की यंहा शहर आ कर गधे की तरह
काम करूँ और जो आमदनी कमाऊ वो बीमारियों, आसमान छु रहे किराये के कमरों, पैकेट के
दूध ,पोलिस दालों, पोलिस चावलों, हाई-ब्रिड फल-सब्जियों मैं ही लग जाता है l जिन
गाँवों मैं कभी पचास से सो परिवार रहते थे आज वंहा मात्र दस-बीस परिवार ही रह गये
हैं, वे भी बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं तथा नशे की जद मैं हैं l जी हाँ मैं लिख रहा हूँ, ये ही सच है l इसी बीच एक टूटे-फूटे घर के पास एक बूढ़ा आदमी
बैठा था उस कार्यकर्त्ता ने उनसे पानी माँगा उन्होंने भी कांपते हाथों उस बटोही को
पानी पिला दिया , कार्यकर्त्ता पानी पीने के बाद उनका आशीर्वाद लेकर आगे बड़ा तो
उसे एक करूण स्वर किन्तु ममतामयी सुनाई दिया वो उलटे पाँव लोट के देखा की जहाँ उसने पानी पिया वही पास मैं एक बूड़ी माता जी
लेटी हैं , बटोही को उनकी दयनीय दशा को
देखकर रोए बिना न रह सका ,वो उस माँ को गले लगाकर खूब रोया मानों आज बरसों बाद माँ
से मिला हो , बटोही को अपना लाडला समझ माँ भी खूब रोई, बटोही ने उन दोनों बुजुर्ग
दम्पति को मानों नया जीवन दिया हो ,प्यार मैं बहुत ताकत है, चाहे इंसानों से करो या फिर जीव-जन्तुओ से
l
वो बटोही अपने किसी सम्मलेन मैं जा रहा था
, तो उसने अपनी जेब मैं हाथ डाला और हजार रूपये उनको देकर चला गया , कुछ दिन और
बीते तो प्रधान साहब भी उनकी खबर लेने आ गये और उन दोनो बुजुर्ग दम्पति की
वृद्धावस्था पेंसन लगवा दी तथा प्रधान जी उनसे यह भी कह गये की जो वो बटोही आपके
द्वार से ममता का आशिर्वाद ले गया था, उसने आपके सारे कर्जे चुकता कर दिए हैं , और
माता जी के लिए दवाई भी भेजी हैं ,और आपके लिए ये छड़ी, उन दोनों दम्पति की आँखों
मैं आशुओं की धारा बहने लगी तथा एक मुख से उस बटोही की मंगलकामना हेतु प्रार्थना
करने लगे अब प्रधान साहब भी चले गये l
कुछ समय बाद उनके पास फोन की घंटी दुबारा
बजी किन्तु इस बार उन्होंने दिल पर पत्थर रख कर दोनों बुजुर्ग दम्पति ने फोन का
जबाब देने की बजाय फ़ोन को आग मैं स्वाहा कर दिया l दोनों बुजुर्ग दम्पति हसी-ख़ुशी
रहने लगे ,आज अचानक शक्ति अपने पिता के सम्मुख था, लेकिन पिता तो बेटे की शक्ल तक
नहीं देखना चाहते थे, लेकिन जब उन्होंने असलियत सुनी तो बेटे को गले से लगा लिया l
आखिर अपने जिगर के टुकडे से कोन अलग रह सकता है l अब पूरा परिवार फिर से एक साथ प्यार-प्रेम और खुशी से रहने लगा l अंत भला तो सब भला l
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