TRUE STORY {इमानदारी का परिचय}





इमानदारी का परिचय 



रविबार का दिन था । शाम को बीबी-बच्चे को अपनी नई नवेली हौंडा स्कूटी से बाजार घुमाने के लिए गया था । बाजार मैं छोटा-मोटा काम निपटा कर स्कूटी से हम फल-सब्जी बाजार की ओर  निकले ही थे मैंने अपनी स्कूटी को रोककर बीबी से फल लेने की बात ही की थी की, इतने मैं फल वाले की आवाज कानों तक आयी एक किलो साठ का, किलो साठ का ! मैंने फल वाले के सामने जाकर अपनी गाड़ी रोकी ,और भाई सो का दो किलो कर दो यार, उसने भी झट से हाँ कर दी  । मैं भी फल को एक-एक करके देखकर तराजू मैं रख रहा था  । फल वाले ने मुझे फल थमा दिए मैंने भी फल अपनी बीबी को थमा दिए , मैंने फल वाले को पैंसे देने के लिए जेंसे ही जेब मैं हाथ डाला, मेरे होश उड़ गये, जेब मैं तो पर्स था ही नहीं , मैं बीबी की ओर देखने लगा मेंने सोचा क्या पता मेरा पर्स उनके पास हो  । लेकिन नही मैं गलत था । मेरा पर्स तो कंही गिर गया था, लेकिन मुझे तो विश्वास ही नही हो रहा था मुझे तो कुछ सूझ ही नही रहा था, दिमाग अस्थिर हो गया था अभी तो मैंने जैकेट ली और पैंसे देने के बाद पर्स अपनी जेब मैं रखा था  । मेरा पर्स आज तक कभी भी गुम् नही हुआ था, लेकिन आज गिर गया l 

न्यूज़ पेपर और लोगों की जुबानी ही सुना था ।लेकिन तब मैं यही सोचता था। लोग कितने लापरवाह होते हैं, लेकिन आज, मैं कितना लापरवाह हूँ ये जरूर समझ आ गया था मुझे , मेरे मन मैं कितने ही विचार चहल-कदमी कर रहे थे l लेकिन अब क्या ? अब तो कोई रास्ता ही नही दिख रहा था , तभी मेरे बगल मैं एक भाई साहब जो अपनी फेमिली के साथ bike पर थे, वो मुझसे पूछने लगे क्या हुआ ,मैं सहमा और उनको अनदेखा अनसुना करके अपने जेब टटोलने मैं व्यस्त हो गया तभी उन्होंने मेरा पर्स मेरे हाथ मैं रखा , मैं यह सब देख कर विश्वास ही नही कर पा रहा था लेकिन यही सच्चाई थी l मैं उनको उनका धन्यवाद तक सही से न कर पाया की वो वंहा से चले गये और बाजार की भीड़ मैं खो गये l मैं उनको ढूढने उनके पीछे जाने लगा लेकिन वो सज्जन जी बाजार की भीड़ मैं खो गये मन मैं एक कसक सी रह गयी थी ,उनको सही से धन्यवाद भी नहीं बोल पाया लेकिन फिर हमको वो सज्जन मित्र मिल ही गये l उनका धन्यवाद किया उनसे कुछ देर बातें की फिर हम लोग अपने-अपने गंतव्य की और चले गये l
  हम लोग आज whatsapp पे लगातार संपर्क मैं रहते हैं l क्योंकि इस व्यस्ततम लाइफ स्टाइल मैं मिलना-जुलना थोडा सा मुश्किल ही है l फिर बात आती है रविवार को मिलने की तो उनका रविवार वर्किंग डे होता है l लेकिन जो भी हो आखिर मैं ,मै यही कहना उचित समझूंगा मुझे इस कलयुग मैं मेरे भगवान् मिले !

ASHOK TRIVEDI
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