वो सपना
वो सपना
काश वो सपना ऐंसा होता , उसे भी पता होता
कौन जागा रातों में, कौन जागा सपनों में
इनायत ये बरसी होती , काश वो साथ होती
न पर्दा इश्क़ का करती , न जाया ये वक़्त होता
कितनी है जिन्दगी ? पल बीते जाये
वक़्त न जाने कल सोच के भी रोये
अनजान कल भी था ,अनजान आज भी हूँ
जिन्दगी यूँ ही सिमटती रेत सी ,फिसलती
सपना देखा उनको अपना मानकर
लेकिन भूल थी ,मेरी उसे अपना जानकर
काश वो सपना ऐंसा होता , उसे भी पता होता
कौन जागा रातों में, कौन जागा सपनों में
इनायत ये बरसी होती , काश वो साथ होती
न पर्दा इश्क़ का करती , न जाया ये वक़्त होता
अशोक त्रिवेदी
१२/१६/२०१७
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