गढ़वाली साहित्य

गढ़वाली साहित्य की रोचक जानकारी 


गढ़वाली साहित्य- गढ़वाली साहित्य में प्रायः दो ही लिंग होते है ------
पुल्लिंग ऊकारांत होते हैं जैसे -पुरणु ,उन्दू,ढिमकू,चोंसु,
चोमासु आदि
स्त्रीलिंग प्रायः  ईकारांत , अकारान्त और ऊकारांत होते हैं जैंसे - काखड़ी ,मुंगरी आदि



साहित्य प्रेमी अशोक त्रिवेदी







  मैं हर बार-त्यौहार मैं स्वाला-पक्वाड़ा बनाना संस्कृति का एक हिस्सा है , और जिन लोगों के यंहा नही पाता (जिनका सूतक के चलते ) उनको भी बनाकर दिया जाता है I

प्रसाद की बात करें तो ज्यादातर रोट, हलवा,गुल्थ्या ,गुलगुला ,चूरण प्रसाद (आटे को भूनकर उसमें चीनी मिककर  बनाया जाने वाला चूरन )









रिवाज़

मेरे गढ़वाल दिवाली मैं --तिल के तिल-छटो की रात्रि के समय घर के पास सभी लोग मिलकर पहले पूजा करते हैं ,तत्पश्चात उनकी मशाल(भेलों)  को सिर के उपर घड़ी की दिशा मैं घुमातें हैं I







महिला मंगलदल / पंचायत 

जिस तरह आज देश की संसद मैं हो हंगामा होता है वो कंही और से नहीं बल्कि हमारे गांवों की पंचायत की देंन  है , क्योंकि मैंने गाँव की पंचायत देखि हैं ,पूरी पंचायत हो हल्ले की भेंट चढ़ जाती है  I लेकिन इसकी एक विशेष महत्वपूर्ण योजना भी चलती हैं जिसमैं ये लोग हर महीने छोटा सा एक अमाउंट जमा करते हैं तथा उसको किसी जरूरत मंद को बहुत कम ब्याज दर पर लोन भी प्रदान करते हैं ,समय-समय पर गाँव के आस-पास की साफ़ सफाई भी स्वयं से करती हैं , और सभी लोग बड़े प्यार प्रेम से रहते हैं l


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