फ्रेंडशिप

A short story -friendship by ashok trivedi https://kundaliya.blogspot.in



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दोस्ती दिल से होती है l किन्तु कुछ इस नाजुक दिल से खेलने वाले, जो खुद को इस खेल का माहिर खिलाडी समझते हैं; उनका भी इन्साफ होता है, और इसी दुनिया मैं रहकर कोई परलोक मैं नहीं l ``किसी के जज्बातों से मत खेलो किसी को कुछ देना चाहो तो रिस्पेक्ट दो ख़ुशी दो आप खुद को अंदर से गौरवान्वित महसूस करेंगे``!   अशोक त्रिवेदी ,


पहाड़ शब्द सुनते ही अक्सर सबके मन मैं एक अलग सी धारणा आ जाती है l पहाड़ मै अनेकों मुशीबतें हैं, किन्तु पहाड़ी जीवन शैली जितनी कठिन प्रतीत होती है, उतनी ही मधुर भी है l एक बार अवश्य मेरे  पहाड़ो (उत्तराखंड) मैं आकर देखिये आप अपने दुःख बीमारियों को हमेशा के लिए भूल जायेंगे खुद को तरोताजा महसूस करोगे और इस कुदरत (प्रकृति) को करीब से समझ सकोगे l बांज बुरांस की जड़ो का ठंडा पानी आपको तृप्त कर देगा , सांस लोगे तो आपका दिल भी इस हवा का दीवाना हो जायेगा l जब आप खाना खाओगे तो मिट्टी से निर्मित चूल्हे मैं बना खाना जरूर खाना हो सके तो रोटी पर लगी राख को भी चख के देखना आप भूल जाओगे की दवाई भी कोई चीज होती है , कुदरत ने सब कुछ दिया है अनेको प्रकार के फल दिए हैं चाहे वे जंगल से हो या घर के आँगन मैं , मेरा उत्तराखंड हमेशा आपकी प्रतिक्षा मैं है l
यह एक काल्पनिक कहानी है, इसका किसी के जीवन से कोई लेना-देना नहीं है l


मैंने अभी-अभी इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की है l  मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार से हूँ ,लेकिन मेरी सोच बहुत ऊँचे अफसर बनने की है जिसको मैंने बचपन से ही खुद के सपनों मैं जगह दे रखी है l और मैं अपने माँ-पापा का भी सपना पूरा करना चाहता हूँ l
   मैंने अपने स्कूल के दिनों मैं पढाई के साथ-साथ मजदूरी भी की है l हां ये सच है जो शायद आप लोग एक्सेप्ट नहीं करोगे साथ ही अपनी माँ के साथ खेतों मैं भी काम किया है ,हल भी चलाया है l लेकिन मैंने अपने मन मैं कभी भी नकारात्मक सोच को जन्म लेने नही दिया अपने विश्वास को टूटने नही दिया और आज इसी विश्वास को लेकर मैं अपनी आगे की पढाई के लिये शहर आया और यूनिवर्सिटी मैं ऐडमिशन ले लिया मैं हर रोज अपनी क्लास अटेंड करता और मुझे collage के हर प्रोफेशर से हमेशा ही प्रशंशा मिलती है l
    मैं यंहा शहर मैं किराये के कमरे पर रहता हूँ ,मैं सुबह अखबार पड़ने के बाद दुकान पर जाकर चाय पीता और चाय पीते-पीते न्यूज़ भी देख लेता था, फिर अपने कमरे मैं आकर अपना खाना बनाकर खाने के बाद अपने बर्तन धोने के बाद collage चला जाता हूँ l
    आज जब collage से आ रहा था तो कमरे से कुछ दूर दो लड़कियां अपनी स्कूटी पर बैठी थी दिखने मैं वो किसी रिच फैमिली से थी मैं अपना सर झुकाकर उनके बगल से गुजरा थोडा ही आगे गया था उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और कहा मैं आपको पिछले तीन दिन से देख रही हूँ और आप हो की मेरे पर ध्यान ही नही दे रहे हो , मैं कुछ बोले ही वंहा से निकल गया मैं तेज़-तेज़ क़दमों से अपने कमरे की ओर बड़ा और अपने कमरे मैं जाकर दरवाजा बंद कर दिया , मैं आज पूरे दिन ही कमरे से बाहर नही निकला मुझे उनके हाव-भाव भी सही नही लगे मै आज बिना खाना खाए ही सो गया सुबह भी जल्दी उठकर क्लास चला गया मैंने जैंसे ही क्लास मैं प्रवेश किया तो मैंने आज फिर उस लड़की को अपनी क्लास मैं भी देखा जैंसे ही क्लास पूरी हुई वो लड़की मेरे पास आकर बैठ गयी मैंने सिर्फ उसकी आवाज़ सुनी :-हाय आईएम अल्पना मैं भी आप की ही क्लास मेट हूँ , मैंने उसकी बातों का कोई जबाब नही दिया और वंहा से उठकर सीधा पुस्तकालय मैं चला गया और अपनी किताब लेकर पढने लगा कुछ देर पढने के  बाद जब मैंने अपनी किताब वापिस रखने के लिए उठा तो देखा वो सामने ही बैठकर मुझ पर अपनी नजरे जमाये बैठी थी l लेकिन मैं वंहा से चला गया , ऐंसे मैं दो साल बीत गये अब हम दोनों मैं कभी कबार कुछ बातें होती रहती थी
    हमारा  फाइनल इयर है लेकिन मेरा ध्यान अब पढाई पर कम अल्पना पर ज्यादा रहता है मैं अपनी राह भटक गया मुझे मेरे अपने सपने बस अब अल्पना मैं ही दिखते हैं ,अल्पना तो पहले ही दिन से मुझे अपना बना चुकी थी , हम अब क्लास मैं कम collage की कैंटीन ही रहते या फिर दूर कंही रेस्टोरेंट मैं दिन गुजर जाता मैं तो अब अपनी पढाई को भुला चूका था , फाइनल इयर के एग्जाम ख़तम हो गये मैं कुछ दिन के लिए घर जाना चाहता था किन्तु अब तो चाह कर भी घर जाने का मन नहीं कर रहा था
अल्पना ने भी मुझे रोक दिया लेकिन एक दो दिन अल्पना के साथ रहने के बाद मैं पहाड़ चला गया पर मेरा मन तो अल्पना के पास था तो मैंने दो दिन बाद ही वापिस शहर आने का फैसला लिया और अल्पना के पास आ गया अब हम पहले की तरह दिन भर इधर-उधर एकांत तलाशते रहते बस बातें ही पूरी नहीं होती थी न खाने की फ़िक्र रहती न सोने की इसी बीच आर्मी की भर्ती थी मैं भी चला गया और भर्ती हो गया लेकिन मैं तो ग्रेजुएशन के फाइनल एग्जाम मैं फैल हो गया और अल्पना पास हो गयी मैंने पापा को फ़ोन करके यह सब बताया तो वो थोड़े दुखी हो गये वो मेरे से नाराज़ हो गये की मैं तो अपनी राह से ही भटक गया मुझे भी कुछ पल के लिए दुःख हुआ लेकिन कुछ पल मैं ही सब कुछ भुला दिया और अल्पना के साथ उसकी स्कूटी पर घुमने चला गया आज वो कुछ छुपा रही थी , मैंने सोचा ये मेरे चले जाने के गम मैं नाराज है लेकिन उसने कुछ नही बताया मेरा कॉल लेटर आया और मैं अपनी ट्रेनिंग मैं चला गया आज जब एक साल बाद घर आया और अल्पना को मिलने गया तो पता चला की अल्पना की शादी होने  वाली है l माथा फिर गया था मेरा ये सब सुनकर मैं पागलों की तरह बुदबुदाते हुए उस गली से जा रहा था अचानक उसी पुरानी जगह मेरे को अल्पना मिली लेकिन अपने मंगेतर के साथ मैंने भी अपनी नजरें झुकाकर निकलने की कोशिस की लेकिनं अल्पना के मुह से अपना नाम सुनकर रुक गया मेरी आँखों मैं आंशु थे मैंने बिना उसे देखे ही बात की और उससे विदा ली उसे अपने किये पर कोई दुःख भी नही था
लेकिन मुझे तो मानो ऐंसे लग रहा था की मैं किसी कीचड भरे नाले मैं डूबा हूँ और अब बाहर नहीं निकल पा रहा लेकिन मैं चुपचाप घर चला गया और कुछ दिन घर पर रहने के बाद वापिस अपनी ड्यूटी पर चला गया ,
    कुछ दिन बाद माँ का फोन आया बेटा शहर से किसी अल्पना नाम की लड़की का रिश्ता आया हैं , मैं हाँ कहूँ या न तू मेरे को बता देना उन्होंने अपना फ़ोन नंबर भी दिया है, और हाँ मैंने अभी तक आपके पापा को ये बात नही बताई है , तू मुझे जबाब दे दे बेटा ,मेरा तो कुछ पल के लिए समझ मैं ही नही आया ये मेरे साथ हो क्या रहा है जिस अल्पना की कल तक शादी होने वाली थी आज उसका मेरे को रिश्ता कैंसे आ गया , लेकिन मन मैं तो बहुत सवाल थे मैंने उसी पल माँ से नंबर लेकर कॉल की तो अल्पना के पापा ने काल अटेंड की और मैंने अपना परिचय दिया उन्होंने भी मेरा हाल चाल पूछा और अल्पना को फ़ोन पकड़ा दिया , कुछ देर बाद अल्पना ने हेलो कैंसे हो आप मैं  तो कुछ बोल ही नही पाया मैं आश्चर्य मैं था ये हो क्या रहा है मेरे साथ , मैंने अल्पना से बाद मैं कॉल करने के लिए कहा उसने शाम को मुझे फ़ोन किया  और अपनी आप बीती सुनाइ सुनकर मैं भी अल्पना के साथ बहुत रोया और दो महीने की छुट्टी लेकर घर आ गया और इन्ही दो महीने मैं मैंने और अल्पना ने लव विद अर्रेंज मेरिज कर ली .....................................
                                                                 अशोक त्रिवेदी 

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