दया धर्म

सुदूर पहाड़ की ढलान पर कुछ सीढ़ी नुमा खेतो की आकृति मानो ऐंसी प्रतीत हो रही है जैंसे हज़ारों इंसान पंक्तिबद्द् बैठें हो ।
  ये कोई परिकल्पना मात्र नहीं ये सच्चाई है मेरे पहाड़ की सुंदरता की, जंहा जल,जंगल,पशु-पक्षी  इसकी खूबसूरती मैं चार चाँद लगा देते हैं  । जंहा बेलों की जोड़ी (हीरा-मोती) के गले मैं बधीं घंटियों की टन-टन की मधुर ध्वनि अतिकर्णप्रिय लगती है ।
  हम सभी का अपनी इस मिट्टी से माँ और बेटे का रिश्ता है । क्या आप अब भी नींद से नही जागे, उठो जागो नींद से अब समय आ गया है ।
  समय कोन सा समय ? क्या ज्ञात है आप लोगों को कोन सा समय आ गया है ; कुछ मुर्ख और कुछ विद्धवान ये सवाल अवश्य ही करेंगे ,की मैं किस अमूल्य समय की बात कर रहा हूँ । जी हाँ कुछ महाशय ये जानते हैं ; मैं पहाड़ बचाओ अभियान की बात कर रहा हूँ ;जीहां सही पढ़ा आप लोगों ने  | अगर आज पहाड़ो को ना बचाया गया तो आने वाली पीढ़ी तरस जायेगी एक घूँट पानी को, तड़प जायेगी ऑक्सीजन की एक सांस को;  तब निर्वस्त्र पहाड़ लाचार और बेवस होंगे | ना तो हवा होगी सांस लेने को ; न पीने को पानी।
     जब हमारे सारे गिलेशियर (हिमशैल) पिघल जायेंगे तो वैज्ञानिकों के अनुसार सारे समुन्दर के किनारे बसने वाले लोगों के आशियां डूब जाएंगे करोड़ों लोग बेघर हो जायेंगे , हमारी आर्थिक राजधानी भी उस दिन जलमग्न हो जायेगी ।
    उस दिन को अगर रोकने का प्रयास किया जाय तो वो प्रयास व्यर्थ नही जायेगा । उस कार्य को आज शुरू किया जाना अतिआवश्यक है । हमारे उत्तराखंड की भूमी मैं  आज इतनी क्षमता नही है की वो एक पानी की बूँद को भी सह सके । आप लोगों के सामने अनेक उदाहरण है - सड़को के चौड़ीकरण के लिये पहाड़ों को तोड़ने  के लिए बिस्फोटको का प्रयोग किया गया जिससे पहाड़ आज इतने नाजुक हो गए हैं की ,धरती मैं होने वाली अंदरूनी उथल-पुथल को वो सहन नही कर सकते ।
   अब आप लोग ये सोच रहे होंगे मेरी विचारधारा  विकाश की और नही है ;लेकिन यंहा आप फ़ैल हो गए । मैं विकसित राज्य और विकसित देश की प्रगति मैं कैंसे बाधक हुआ ? मैं तो मात्र प्रयास रत हूँ , की मेरे पहाड़ को बचाओ  यदि आज पहाड़ो को नही बचा सके तो आने वाली तारीख याद रखना संपूर्ण सृष्टि का विनाश निश्चित होगा; क्योंकि उस दिन हिमालय नही होगा और सारी दुनियां जलमग्न हो जायेगी ।
    शायद ये सब आपको कोई वैज्ञानिक बताता या समझाता तो आप यकींन  मानते लेकिन आपको तो मैं पागल पहाड़ प्रेमी बता रहा हूँ आप कहाँ समझने वाले ।
    आप लोग ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) के बारे मैं तो समझते ही हो लगातार मौसम की गतिविधियों  मैं परिवर्तन ये सब अनिमियतता  देखने को सारे विश्व मैं मिल रही है । "वो दिन याद रखना जब इंसान पानी की तरह हवा को भी फ़िल्टर करके सांस लेगा "
     लो जी लोटने लगा हिमयुग भी अभी कुछ दिन पहले की बात है उत्तराखंड के  बैज्ञानिकों ने केदारनाथ मंदिर के ४०० साल तक बर्फ मैं दबे होने की पुष्टि की , हिमयुग के कारण पूरा मंदिर ४०० साल तक बर्फ मैं दबे होने के कारन भी मंदिर को कोई भी हानि नहीं हुई , लेकिन  वो हिमयुग वापिस आ रहा है आने वाले १०० -१३० सालों  मैं  लगभग  ३० %   हिमालय का  भू-भाग जो बर्तमान मैं बुग्याल से भरा रहता है वह हिमयुग की चपेट मैं रहेगा लेकिन इसके बाद पर्यावरण की अनिमियतता के कारण हिमयुग कब तक रहेगा यह भी कह पाना असंभव है !

इसको अभी अपडेट होने मैं वक़्त है कृपया इन्जार करें ! धन्यवाद 

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