मेरे पहाड़ी और पहाड़

भारतवर्ष मैं उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है । जो हिमालय की गौद मैं बसा है । यंहा के लोग बड़े ही भोले-भाले स्वभाव के होते हैं ।
     यंहा की अपणी एक लोक सभ्यता है । हम पहाड़ी लोग साधारण तरीके से अपना जीवन यापन करते हैं ।
  उत्तराखंड की स्थापना 9 नवम्बर 2000 को हुई ,पहले हम उत्तरप्रदेश मैं आते थे । जो काफी संघर्ष करने बाद एक पृथक राज्य बना । जिसके लिए कई लोग शहीद हो गए (माताओ ने अपने बेटे खोये,बहनों ने भाई, कई माताये भी शहीद हुई ! शासन ने उस समय इतनी निरंकुशता की आह ! ऐसी बर्बरता को कौन भुला सकता है । दिल काँप उठता है उस बात को याद करके ,मैं बहुत छोटा बच्चा था तब लेकिन अखबारों की वो लाइन आज तक मेरे जेहन मैं हैं )                       
   यंहा कुमाऊं और गढ़वाल को मिला कर 13 जिले है । है यंहा की पहाड़ी भाषाएँ गढ़वाली,कुमाउनी,जौनसारी मुख्य रूप से बोली जाने वाली भाषाये हैं ।
   आप लोगों ने यदि यंहा के लोक गीतों को सुना होगा तो आप यंहा की सुंदरता,विपदा,आपदा, आदि बातों से भी वाकिफ होंगे । आप लोग पहाड़ का जीवन जितना सरल समझते हो उतना है नही ,यंहा का रहन सहन भी अब किसी शहरी क्षेत्र से कम नही ।
     यह सिर्फ सुनने मैं ही अच्छा लगता है । जब बरसात के मौसम मैं कई रातों तक घुप अँधेरे मैं सहम के सोना पड़ता है ,तो महसूस होता है शायद सुबह होगी ही नही ; (बस उस वक़्त नेगी जी का वो मसहूर गाना याद आता है जिसकी एक लाइन -देर होली अबेर होली,होली जरूर सुबेर होली) लेकिन उस भयावह रात के बाद फिर से एक सुहावनी सुबेर होती है । जिसमें पहाड़ पर रहने वाला हर इंसान अपण छुटा-मूटा काम निपटान मैं बिजी ह्वै जांद ,हम पहाड़ी उस भयावह काली रात को भूला कर शाम होने तक अपने रोज-मर्रा के काम  निपटा लेते है । और फिर सुबेर होण का इंतज़ार मा रेंदीन ।
हमारी नींद ता सुबेर का होण मा, पक्षियों की मीठी सी चहचाहट ले खुली जांदी । पर हमारी सरकार  सुनिंद सिंयी रैंदी उनको हम पहाड़ वालो की चिंता मात्र चुनाव का टेम पर होंदी चाहे वो लोकसभा हो चाहे विधानसभा ।
    सब यखी पहाड़ मा अपना ढेरा लगा देते हैं ।
बस हम पहाड़ी लोग फिर से ठगी का शिकार हो जाते हैं । वो लोग अपनी सत्ता के नशे मैं सुनिंद स्ये जान्दन।और हम  जख का तखी रे जान्दन ।
हमारी खबर लेण वलु क्वे भी नी ची ।
चुनाव का टेम मा गाँव मैं 24 घंटा बिजली जरूर रहेगी पर जैंसे ही चुनाव खत्म बिजली की बत्ती 24/4 ह्वै जांदी ।
हाँ एक अच्छी बात ये है कि जो सड़क गाँव से 10 किलोमीटर दूर थी उसका 100 मीटर आगे बढ़ाने का बजट पास हो जाता है , ध्यान रहे मात्र बजट पास होता है; फिर खबर आती है कोष मैं पैंसा ही नही है ,फिर से हम पहाड़ी ठग लिए जाते हैं ।


सूचना ; अभी कुछ दिनों के लिए बिजी हूँ कुछ और वक़्त दीजिये मेरे प्रिय पाठको , आपके लिए मैं एक गढ़वाली कहानी ले के जल्द ही आऊंगा , meri ek aur kahani bahut jaldi aap logon ke aane wali hai namskaar

please mujhe likhe 
aashu.trivedi86@gmail.com

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